जानिए देश के पहले एलोवेरा गावं की कहानी!

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हम सभी एलोवेरा के औषधीय गुणों से वाकिफ़ है. आज शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा जो एलोवेरा के इस्तेमाल की उपयोगिता को नहीं समझता होगा. कोरोना काल में इसकी मांग में भयंकर इजाफ़ा देखने को मिला है. शायद हैंड सैनिटाइजर में इसका इस्तेमाल इसकी एक बड़ी वजह रही होगी. हमारे देश के किसान भी इसकी खेती करने के लिए काफ़ी उत्सुक रहे हैं. वो लगातार इसकी खेती से सम्बंधित जानकारी इन्टरनेट और अन्य समाचार माध्यमों से जुटा रहे हैं. हम आपको इस आर्टिकल की मदद से ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे एलोवेरा गावं के( AloeVera Village) नाम से जाना जाता है.

एलोवेरा गांव

रांची के देवरी गांव को एलोवेरा गांव( AloeVera Village) के तौर पर पहचान मिल गई है. यह देश का पहला एलोवेरा गांव है जहाँ खेतों से लेकर पगडंडियों तक में एलोवेरा उगाया जा रहा है. भारत सरकार ने इसे आत्मनिर्भर भारत(Aatm Nirbhar Bharat) का चैंपियन गांव भी घोषत कर दिया है. इस गांव के लोग पहले धान की खेती करते थे. पहले गांव वालो को धान की खेती से प्रति माह लगभग 3000 रुपये की आमदनी होती थी. अब गांव के लोग नई तरीक़े की खेती से न केवल खुश हैं बल्कि उनकी आमदनी में भी काफ़ी इज़ाफा हो गया है. गांव वाले ख़ुद तो मालामाल हो ही रहे हैं साथ में अन्य लोगों को भी आत्मनिर्भर भारत(Aatm Nirbhar Bharat) का पाठ भी पढ़ा रहे हैं.

प्रधान मंजू कच्छप का रहा योगदान

देवरी गांव को एलोवेरा गांव( AloeVera Village) का दर्जा दिलाने में गांव की प्रधान मंजू कच्छप( Manju Kachhyp) का योगदान सराहनीय रहा. इनकी बदौलत ही गांव के लोग धान की पारंपरिक खेती के बदले एलोवेरा की खेती करने के लिए राजी हुए. दरअसल साल 2018 बिरसा कृषि विश्व विद्यालय की तरफ़ से औषधीय पौधें उगाने की पहल शुरू की गई थी और गांव की किसान और पद में प्रधान मंजू कच्छप (Manju Kachhyp) इस पहल के तहत एलोवेरा उगाने की योजना बनाई. उन्हें विश्व विद्यालय के प्रोफेसर डॉ कौशल ने गाइड करने के साथ-साथ खेती करने के लिए ट्रेनिंग भी प्रदान की. मंजू को इसे उगाने की प्रेरणा अपने घर के गमले में लगाए गए एलोवेरा के पौधे से मिली. उन्होंने देखा इसको तैयार होने में 18 महीनों का वक़्त लगता है और इसके लिए धान जितनी मेहनत भी नहीं करनी पड़ती है. मंजू ने अपने साथ-साथ गांव वालो को इसकी खेती के लिए मना लिए और फिर खेती करने के इच्छुक किसानों को डॉ. कौशल की मदद से ट्रेनिंग दिलवाई. ट्रेनिंग खत्म होने के बाद डॉ कौशल ने सभी गांव वालो को 50-50 एलोवेरा पौधे उपहार स्वरूप दिए. जिसे किसानों ने एक छोटे से खेत में उगाया और अच्छी पैदवार एंव अच्छी आमदनी के कारण किसानों ने इसे अपनी पूरी ज़मीन पर उगाना शुरू कर दिया.

पत्तियों का वजन आधा किलो के बराबर

एलोवेरा को तैयार होने में क़रीब 18 महीने का वक़्त लगता है और इस दौरान इसकी प्रत्येक पत्ती का वजन क़रीब आधा किलो हो जाता है. उत्पाद की गुणवक्ता अच्छी होने के कारण कई आयुर्वेदिक कंपनियां इस गांव के चक्कर लगा चुकी हैं. कंपनियां किसनों के साथ कॉन्ट्रैक्ट भी कर चुकी हैं. अब यहाँ के किसानों को कोलकाता और हजारी बाग़ से डिमांड भी आ रही हैं.

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