गरीबी लेकर पैदा होना हमारे हाथ में नहीं है, लेकिन मेहनत कर गरीबी को दूर करना हमारे हाथ में ज़रूर है. राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में रहने वाले अजय ने न केवल मेहनत कर गरीबी पर जीत हासिल की है, बल्कि आज वो एक सफल व्यसायी बनकर कई लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं. अजय ने ये मुकाम ऐसे ही नहीं हासिल किया. उन्हें इसके लिए कठोर परिश्रम करने के साथ धैर्य भी रखना पड़ा. बचपन से लेकर जवानी तक अजय को कई कठनाइयों का सामना करना पड़ा.
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बचपन में धोने पड़े थे बर्तन
अजय ज़िन्दगी शुरुआत के समय से ही जिम्मेदारियों को अपने कंधो में लेकर चल रहे हैं. अजय ने बचपन में ही अपने पिता को खो दिया था. उस वक्त उनके घर में कोई भी कमाने वाला मौजूद नहीं था जिसके चलते अजय ने छोटी उम्र में ही काम करना शुरू कर दिया. घर चलाने के लिए अजय ने पहले एक चाय की दुकान में बर्तन भी धोए. मालिक की डांट और बेफालतू की फटकार के बाद उन्होंने ख़ुद की ही चाय की दुकान खोल ली. दुकान में काफ़ी मेहनत करने के बाद भी उन्हें मुनाफ़ा नहीं हुआ. इस वजह से उन्हें दुकान बंद करनी पड़ी थी. इसके बाद उन्होंने खेती करने का निर्णय लिया.
खेती का आईडिया भी हुआ फेल
अजय के पास अपनी खानदानी जमीन थी जिसमें उन्होने पारम्परिक खेती की शुरुआत की, लेकिन पारंपरिक खेती में ज़्यादा मेहनत करने के बाद भी जीवनयापन करने में बहुत कठनाई हो रही थी. उन्होंने यहां भी हार नहीं मानी और आगे बढ़ने के लिए प्रयास करते रहे.
एलोवेरा की खेती का आईडिया
पारम्परिक खेती करने के दौरान इन्होंने नोटिस किया कि रामदेव बाबा के आयुर्वेदिक प्रोडक्ट काफ़ी चलन में हैं और वो अपने अधिकतम प्रोडक्ट में औषधीय गुणों वाले पदार्थो का इस्तेमाल करते हैं. इसके बाद अजय ने बाज़ार से जानकारी जुटाना शुरू कर दिया. कुछ दिन रिसर्च करने के बाद उन्हें एलोवेरा के बारे में पता चला. इसके बाद उन्होंने एलोवेरा की खेती करने का तय किया.
एलोवेरा के पौधो का इंतजाम
जय ने यह सोच तो लिया कि वह एलोवेरा की खेती करेंगे लेकिन उन्हें ये नहीं पता था कि वह एलोवेरा के पौधो का इंतजाम कहाँ से करें. तब उनके कुछ रिश्तेदारों से उन्हें पता चला कि चूरू के ही एक कब्रिस्तान में एलोवेरा के पौधे हैं. कुछ दिन पौधों के बारे में जानकारी जुटाने के बाद उन्हें ज्ञात हुआ कि कब्रिस्तान वाले एलोवेरा पौधों को हटना चाहते हैं. अजय के लिए एक अवसर था जो उन्हें एलोवेरा की खेती करने की तरफ़ ले जा रहा था. उन्होंने एक दिन समय निकालकर कब्रिस्तान जाने की योजना बनाई. जिसके बाद एक सुबह अजय ट्रेक्टर लेकर कब्रिस्तान पहुँच गए और पौधों को उखाड़कर ले आए और पौधे खेत में लगा दिए.
खेती की शुरुआत
अजय ने एलोवेरा पौधे तो खेत में लगा दिए थे लेकिन इसकी खेती कैसे करनी है उसकी उन्हें बिल्कुल भी जानकारी नहीं थी. जिसके बाद अजय ने एलोवेरा की खेती कर रहे लोगों के पास जाना शुरू किया. वो एक एक कर एलोवेरा की खेती करने वालो के पास गए और खेती से जुड़े गुर सिखने लगे. उन्होंने पहले से खेती कर रहे लोगों से पास जाकर खूब जानकारी हासिल की. इसके एक साल बाद एलोवेरा के पौधे तैयार गए. उन्होंने एलोवेरा का जूस बनाकर पानी की बोतलो में भरके बेचना शुरू किया. कुछ समय बाद उनके कई ग्राहक बन गए और धीरे- धीरे कुछ कंपनियों से भी मांग आने लगी.
45 से ज़्यादा प्रोडक्ट्स का उत्पादन
अजय पिछले 12 साल से एलोवेरा की खेती कर रहे हैं और वह कुल 45 अलग-अलग तरह के प्रोडक्ट बनाते हैं. जिसमें शैंपू, कंडीशनर, साबुन जैसे प्रोडक्ट शामिल हैं. हाल ही में उन्होंने एलोवेरा के लड्डू का भी उत्पादन शुरू किया है. उनके इस उत्पाद को भी ग्राहकों द्वारा काफ़ी सराहा जा रहा है. 31 वर्षीय अजय अपने इस व्यवसाय से अब प्रतिमाह एक लाख रुपए से ज़्यादा कमा रहे हैं. कुछ टाइम पहले उन्होंने अपनी कंपनी भी खोल ली है. उन्होंने कंपनी का नाम नेचुरल हेल्थ रखा है और उसका रजिस्ट्रेशन भी करा लिया है. आज अजय 30 एकड़ जमीन पर एलोवेरा की खेती करते है. अजय ने बिना किसी की मदद से यह मुकाम हासिल किया है. आज अजय देश के युवाओं के लिए एक प्रेरणा बन गए हैं.